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Paddy Production

धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उत्तम किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को हरियाणा, दिल्ली जम्मू- कश्मीर, पंजाब और उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए विकसित किया है। 

मानसून की दस्तक के साथ ही धान की खेती चालू हो गई है। समस्त राज्यों में किसान भिन्न भिन्न किस्म के धान का उत्पादन कर रहे हैं। कोई मंसूरी धान की खेती कर रहा है, तो कोई अनामिका धान की खेती कर रहा है। 

परंतु, बासमती की बात ही कुछ ओर है। अगर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसान बासमती की खेती करना चाहते हैं, तो आज हम उनको कुछ ऐसी प्रमुख किस्मों के विषय में जानकारी प्रदान करेंगे, जिससे उनको अच्छी खासी पैदावार अर्जित होगी। 

विशेष बात यह है, कि इन प्रजातियों को कृषि वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न राज्यों के मौसम को ध्यान में रखते हुए इजात किया है।

पूसा सुगंध- 5:

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उम्दा किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को जम्मू- कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, यूपी और हरियाणा की जलवायु को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। 

यदि इन राज्यों के किसान पूसा सुगंध- 5 की खेती करते हैं, तो उनको बेहतरीन उत्पादन मिलेगा। पूसा सुगंध- 5 की रोपाई करने के 125 दिन पश्चात इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। इसकी खेती करने पर एक हेक्टेयर में 60-70 क्विंटल तक पैदावार होगी। 

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पूसा बासमती- 1121:

पूसा बासमती- 1121 को कृषि वैज्ञानिकों ने सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया है। इसकी फसल 145 दिन के अंतर्गत तैयार हो जाती है। 

पूसा बासमती- 1121 की उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1121 धान की एक अगेती किस्म है।

पूसा सुगंध- 3:

पूसा सुगंध- 3 को सुगंध और लंबे चावल के दाने के लिए जाना जाता है। यह खाने में बेहद ही स्वादिष्ट लगता है। यदि हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली के सिंचित क्षेत्रों के किसान इसकी खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल पैदावार अर्जित कर सकेंगे। इसकी फसल 125 दिन के अंतर्गत पक कर तैयार हो जाती है। 

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पूसा बासमती- 6:

पूसा बासमती- 6 की सिंचित इलाकों में रोपाई करने पर अधिक उत्पादन अर्जित होगा। यह एक बौनी प्रजाति का बासमती धान होता है। इसके दाने काफी ज्यादा सुगंधित होते हैं। पूसा बासमती- 6 की उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल होती है।

पूसा बासमती- 1:

पूसा बासमती- 1 धान की एक ऐसी किस्म है, जिसका उत्पादन किसी भी प्रकार के सिंचित क्षेत्रों में किया जा सकता है। इसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा पाई जाती है। इसमें झुलसा रोग की संभावना ना के समान है। 

विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1 की फसल 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मतलब कि 135 दिन के पश्चात किसान इसकी कटाई कर सकते हैं। 

यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में पूसा बासमती- 1 की खेती करते हैं, तो लगभग 50-55 क्विटल तक उत्पादन मिल सकता है।

किसान धरमिंदर सिंह ने यांत्रिक रोपाई तकनीक से धान की रोपाई कर बेहतरीन उत्पादन अर्जित किया

किसान धरमिंदर सिंह ने यांत्रिक रोपाई तकनीक से धान की रोपाई कर बेहतरीन उत्पादन अर्जित किया

किसान धरमिंदर सिंह ने खेती की नवीन तकनीकों के जरिए दूरगामी सोच की बेहतरीन मिसाल कायम की है। इस नवीन यांत्रिक रोपाई तकनीक के जरिए से उन्होंने अपने उत्पादन को दोगुना कर लिया है। पंजाब के संगरूर जनपद के किसान धरमिंदर सिंह अपने 52 एकड़ खेत में गेहूं एवं धान की पारंपरिक खेती किया करते थे। वह पारंपरिक ढ़ंग से प्रवासी श्रमिकों के सहायता से कद्दू और पूसा 44 चावल के किस्म के धान की खेती किया करते थे। उन्होंने वर्ष 2019 में एक रोपाई करने की मशीनरी किराए पर ली एवं इससे उनकी खेती की पैदावार दोगुनी हो गई।

किसान धरमिंदर ने कोरोना काल में दौरान खेती की तकनीक बदली

कोरोना काल के चलते संपूर्ण पंजाब में धान की कटाई के लिए प्रवासी मजदूरों की काफी कमी थी। इस दौरान धर्मेंद्र सिंह ने विगत वर्ष के अनुभव का फायदा उठाया एवं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अनुशंसित यांत्रिक रोपाई तकनीक का सहयोग लिया। साथ ही, धान की रोपाई के लिए वॉक-बैक ट्रांसप्लांटर खरीदा। धरमिंदर सिंह को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का भरपूर सहारा मिला। उनका कहना है, कि इस प्रकार से बोई गई धान की फसल सामान्य ढ़ंग से बोई गई फसल के मुकाबले काफी आसान होती है। इस मशीन की सहायता से बिजाई करने में कोई परेशानी भी नहीं आती है। ये भी देखें: धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

किसान धरमिंदर ने केवीके के वैज्ञानिकों के निर्देशन में खेती की थी

धरमिंदर सिंह ने 2022 में केवीके वैज्ञानिकों के दिशा निर्देशन के उपरांत एक एकड़ के खेत में धान की कम वक्त में पकने वाली किस्म पीआर 126 की बुवाई की, जिसकी पैदावार पूसा 44 किस्म से तकरीबन डेढ़ क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा थी। साथ ही, इस किस्म में जल की खपत भी काफी कम होती थी। इसी की तर्ज पर उन्होंने साल 2023 में कम समयावधि की किस्मों पीआर 126, पूसा बासमती 1509 एवं पूसा बासमती 1886 की रोपाई करी। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि ट्रांसप्लांटर से धान की रोपाई करने पर प्रति वर्ग मीटर तकरीबन 30-32 पौधे सुगमता से लग जाते हैं। यह प्रति मीटर लगाए गए परिश्रम के मुकाबले में 16 से 20 पौधे अधिक हैं। इस मशीन की सहायता से लगाए गए धान की कतारें सीधी होती हैं। साथ ही, खेतों में खाद के छिड़काव करने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है। इसके अतिरिक्त खेत बेहतर ढ़ंग से हवादार होते हैं, जिससे फसलों में बीमारियों का संकट कम हो जाता है।

किसान धरमिंदर को दोगुनी उपज हांसिल हुई

धरमिंदर आगे कहते हैं, कि ट्रांसप्लांटर तकनीक से लगाए गए धान की उपज कद्दू विधि से लगाए गए धान के मुकाबले में प्रति एकड़ डेढ़ से दो क्विंटल ज्यादा होती है। पीआर 126 किस्म की समयावधि कम होने की वजह से गेहूं की कटाई एवं धान की रोपाई के मध्य पर्याप्त समय मिल जाता है। इस प्रकार धरमिंदर सिंह धान की दीर्घकालिक किस्मों की खेती को त्यागकर नवीन कृषि तकनीक अपनाकर इलाके के बाकी किसानों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर दिया है।